Monday 3 September 2012

शिक्षक दिवस :एक पुनर्विचार



  शिक्षक दिवस :एक पुनर्विचार

साथियों,

प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी हम 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाएंगे .यह सोचने का विषय है की हम इस दिन शिक्षक दिवस क्यों मानते हैं और क्या यह दिन शिक्षकों का दिन है .इसी सन्दर्भ में हम आपके साथ शिक्षक दिवस (5 सितम्बर ) के बारे में कुछ विचार साझा करना चाहते हैं .यह दिन भारत के द्वितीय राष्ट्रपति सर्वपल्ली डाक्टर राधाकृष्णन का जन्मदिन है. जब राधाकृष्णन भारत के राष्ट्रपति बने उसी समय उनके विद्यार्थी और मित्रों ने उनका जन्मदिवस मनाने की बात उनसे की और उन्होंने स्वयं ही अपने जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने का सुझाव दिया. हमारे अनुसार शिक्षक दिवस के रूप में हमे उस दिन को मनाना चिहिए जिस दिन की शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षक ने कोई महत्वपूर्ण कार्य किया हो या उस दिन शिक्षा के क्षेत्र में कोई महत्वपूर्ण उपलब्धि रही हो. सर्वपल्ली राधाकृष्णन दर्शनशास्त्र के एक बड़े विद्वान माने जाते है पर क्या विद्वान होना ही पर्याप्त है? इनके विश्वविद्यालयी अध्यापन के समय आजादी की लड़ाई चरम पर थी. डाक्टर राधाकृष्णन को सन 1931 में नाईटहुड की उपाधि दी जाती है और यह वही वर्ष है जब हिन्दुस्तान के क्रांतिकारियों भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा दी गयी. ऐसे समय में ब्रिटिश उपाधि को स्वीकार करना किस प्रकार की संवेदनशीलता को दर्शाता है?
दूसरी ओर, हिन्दुस्तान में ऐसे बहुत से व्यक्तित्व रहे है जिन्होंने समाज के प्रति समर्पित रहते हुए शिक्षा के क्षेत्र में मौलिक कार्य किया. इसमें सर्वप्रथम क्रान्तिजोत सावित्रीबाई फूले का नाम लिया जा सकता है, जिन्हें भारत की प्रथम महिला शिक्षिका होने का गौरव प्राप्त है इनका जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र में एक दलित परिवार में हुआ. इन्होने ज्योतिबा फूले के साथ जातिगत भेदभाव व अन्याय के खिलाफ संघर्ष किया और इसी क्रम में 14 जनवरी 1848 में लड़कियों के लिए पुणे [महाराष्ट्र] में एक विद्यालय खोला. इसी क्रम में गुरु रविन्द्रनाथ टैगोर को भी याद किया जा सकता है. गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोरे का जन्म 7 मई 1861 में हुआ. गुरु रविन्द्रनाथ कवि, संगीतकार, चित्रकार, दार्शनिक, लेखक व शिक्षक थे. तात्कालीन राजनीति से उनके गहरे सरोकार का परिचय इस बात से मिलता है कि 1919 के जलियावाला बाग़ नरसंहार के विरोध में उन्होंने अपनी नाईटहुड की उपाधि वापस कर दी. उन्होंने प्रकृतिवाद और विश्व बंधुत्व को शिक्षा में स्थापित करने हेतु २२ दिसंबर १९०१ को शांति निकेतन में एक विद्यालय कि स्थापना की. इसी कड़ी में एक और व्यक्तित्व गिजुभाई बधेका है. गिजूभाई का जन्म १४ नवम्बर १८८५ को गुजरात में हुआ. पेशे से वकील गिजुभाई ने मांटेसरी पद्धति की शिक्षा को भारतीय शिक्षा व्यवस्था में स्थान दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया और शिक्षा की पुरातनपंथी पद्धति पर कुठाराघात किया. बाल स्वतंत्रता एवं प्रेम जैसे मूल्यों का उनके जीवन में इतना गहरा स्थान था की बच्चों द्वारा उन्हें '' मूछों वाली माँ '' कहकर संबोधित किया जाता था. गिजुभाई ने बच्चों, शिक्षको व अभिभावकों के लिए काफी साहित्य रचा जो आज भी प्रेरणा का श्रोत है.
साथियो, हम शिक्षकों को इस पर विचार करना चाहिए कि शिक्षक दिवस मनाने के कौन सा दिन उपयुक्त होगा. किसी का जन्मदिवस या शिक्षा के क्षेत्र में कोई ऐतिहासिक दिवस?

                                                                               लोक शिक्षक मंच
                                                                                    

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