Thursday 15 August 2013

खबरों से: पीपीपी की भेंट चढ़ता गरीब बच्चों का भविष्य

पंजाब के गरीब बच्चों को बेहतर शिक्षा की सुविधा मुहैया करवाने की तत्कालीन सरकार की कोशिशे भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी है। बादल ड्रीम के नाम से शुरू किए गए आदर्श स्कूलों में 24 में से 10 स्कूल योजना के आरंभ होने के कुछ दिन बाद ही बंद कर दिए गए और 12 बंद होने की कगार पर है। जो स्कूल अभी चल रहें है उनमें आधारभूत सुविधाएं नदारद है। प्रदेश की शिरोमणी अकाली दल और भाजपा गठबंधन की सरकार ने पंजाब शिक्षा विकास बोर्ड के तहत इन आदर्श स्कूलों की स्थापना की थी। यहां निजी भागीदार भारती एंटरप्राइजेज है। इसके सीइओ का कहना है कि सराकरी शिक्षा व्यवस्था में बड़ी खामियां है इसलिए पीपीपी स्कूल ही देश का भविष्य है। पंजाब के ये स्कूल पब्लिक-प्राइवेट साझोदारी (पीपीपी) के तहत शुरू किए गए। प्रदेश शिक्षा विभाग ने प्रति छात्र 1680 रू प्रति माह ओपरेटिंग कॉस्ट तय की थी, जिसे सरकार और निजी निवेशेकों के बीच 70 और 30 के अनुपात में व्यय किया जाना था और इन स्कूलों के लिए जमीने पंचायत से 99 वर्ष के लीज पर ली गई। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गयी जानकारी में पाया गया की पंचायतों के साथ सरकार ने विश्वासघात करते हुए जमीनों के मालिकाने के साथ स्कूल भी निजी हाथों में सौंप दिए। बच्चों की शिक्षा के लिए मिला फंड भी डकार गए। ये स्कूल गरीब बच्चों को मुफ्त व बेहतर शिक्षा देने के लिए खोले गए थे जबकि आडिट के दौरान पाया गया कि यहां बच्चों से ऊँची फीस वसूली गई। जो स्कूल बंद कर दिए गए वहां से तमाम जरूरी जानकारियां और स्कूली संपत्ति जैसे की बसें और फर्नीचर गायब पाए गए। बच्चों के भविष्य के साथ जो खिलवाड़ हुआ वो तो हुआ ही साथ ही शिक्षको  और गैर शिक्षकीय विभाग का भी शोषण किया गया, उन्हें मैंनेजमेंट के तहत खोले गए दूसरे पोलिटेक्निक कॉलेजों के प्रचार प्रसार में लगाया गया, उनके वेतन में कटौती की गई। जिन अध्यापकों ने बगावत की उन्हें निकाल दिया गया। तो यह हाल है इन आदर्श स्कूलों का, न मालूम ये कौन से आदर्श स्थापित कर रहें है? इन स्कूलों की स्थापना पब्लिक -प्राइवेट साझोदारी के तहत ग्रामीण बच्चों को मुफ्त व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की लिए की गई थी पर इसकी परिणति आपके सामने हैं। पंजाब ही नहीं दूसरे राज्यों में भी इस तरह के प्रयोग किए जा रहें है और बच्चों के भविष्य पर दाव लगाया जा रहा है, सारे प्रयोग इन गरीब व सामाजिक रूप से पिछड़े बच्चों पर ही क्यों किए जाते है? स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग, भारत सरकार क़ी देश में पीपीपी माडल के तहत 2500 स्कूल सन 2015-16 तक खोलने की योजना है। पीपीपी की संकल्पना ऊपर से देखने पर बड़ी भली लगती है और सरकार ने इसकी संकल्पना भी बड़ी खूबसूरती से पेश की है पर असलियत यह है कि शिक्षा को निजी हाथों में पूरी तरह से सौंप दिए जाने की मंशा है। हमारे देश के कानून में शिक्षा को लाभ से दूर रखने की बात कही गई है पर हो कुछ और ही हो रहा है। वैसे सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों का चलन तो पहले से ही है पर मॉडल स्कूलों में नई बात यह होगी की निजी संस्थाओं को स्कूली जमीन का अपने दूसरे उह्नेश्यों जैसे की वोकेशनल ट्रेनिंग व दूसरी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल करने की छूट रहेगी। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके प्रावधानों में कहा गया है कि 40 प्रतिशत सीटें गरीब बच्चों के लिए होंगी और 60 प्रतिशत सीटें निजी भागीदार तय करेगी। उन 40 प्रतिशत बच्चों को निशुल्क शिक्षा दी जाएगी और बाकी बच्चों की फीस निजी भागीदार तय करेगी तो क्या हम यह अंदाजा नहीं लगा सकते जैसा कि देश के प्रमुख शिक्षाविद कह रहे हैं कि इससे निजीकरण और व्यवसायीकरण को बढ़ावा मिलेगा।
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